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परम्परा का पहाड़


🌹परम्परा का पहाड़🌹

 

एक समय की बात है कुछ स्त्रियाँ पहाड़ पर देवी पूजा के लिए जा रही थी उनमे से एक को लघुशंका का वेग आया तो उसने चट्टान की ओट में जाकर अपने को निवृत करने के बाद ,(अपने शुद्धिकरण के बाद) ,

जब पूजा की थाली उठाई तो उसमे से दो पूड़ी वही गिर गई ।

 

उसके उस जगह को पार करने के बाद पीछे आती स्त्रियों ने जब वहाँ पर कुछ जल और पूड़ी गिरी हुई देखी तो उन्होंने भी वहाँ पर थोड़ा सा जल और दो पूड़ी छोड़ दी और इस तरह से वहाँ पर जो भी स्त्री आती वो थोड़ा सा जल और दो पूड़ी  छोड़ देती इस प्रकार कुछ ही समय में वहाँ पर पूड़ी का पहाड़ बन गया ।

 

देवियो और सजन्नो क्या हम भी सुनी सुनाई परम्पराओ को ऐसे ही तो नहीं निभा रहे है ?

 

परंपरा सही और गलत हो सकती है किन्तु जो सनातन शास्त्र सम्मत परंपरा है वो सही गलत  या ठीक नहीं, वह सटीक होती है क्या हमें अपने सनातन शास्त्रों सम्मत का पालन नहीं करना चाहिए ?

 

क्या जो परंपरा हमें मात्र किसी के कहने सुनने और बताने से प्राप्त हुई है क्या हमें उनका आधार जानने का प्रयास नहीं करना चाहिए ?

 

अगर उस आधार में सनातन शास्त्रों से सम्मति नहीं है तो क्या हमें उसे त्यागने का निर्णय नहीं लेना चाहिए ?

 

क्या हमें सत्य जानने के लिए अपने सनातन शास्त्रों का अध्ययन नहीं करना चाहिए?  

 

जरा विचार करे 

🌹राम राम 🌹

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