मूर्त की कथा
💐मूर्त की कथा 💐
एक बार की बात है एक सुन्दर मूरत और जमीन पर बिछे पत्थर में बात चल रही थी जमीन पर बिछा हुआ पत्थर बोला कि हम दोनों एक ही माता पिता की संतान है हम एक ही कोयले की खान से निकले है किन्तु देखो विधि का पक्षपात कि मुझे बिछा दिया गया और मेरे ऊपर ही खड़े होकर तुम्हारी तारीफ की जाती है और पाँव में बिछे हुए मुझ पत्थर की तरफ कोई गौर भी नहीं करता मूरत बोली भाई तुम्हे याद है कि जब शिल्पकार मुझ पर छेनी और हथोड़ा चला रहा था तब मुझे बहुत पीड़ा हो रही थी जगह जगह से में छीला जा रहा था और उस पीड़ा को सहते हुए बिना टूटे शिल्पकार की सहमति में अपना समर्थन दिया और अपने आपको समर्पित किया उस शिल्पकारी की वजह से उसने मुझ साधारण से पत्थर को एक सुन्दर मूरत में परिवर्तित कर दिया और भाई तुम्हे यह भी याद है कि जब वह यह काम तुम्हारे ऊपर कर रहा था तो तुम उसकी छेनी हथोड़ी की चोट को नहीं सह पाते थे और टूट जाते थे इसी कारण से तुम बिछा दिए गए और मेरी मूरत बन गई यह विधि का पक्षपात नहीं यह विधि का विधान है जिस विधान में परमात्मा की तरफ समर्थन और समर्पण हो तो उसे कुछ पीड़ा तो जरूर सहनी पर सकती है किन्तु वह परमात्मा की इच्छा से एक सुन्दर मूरत में भी परिवर्तित हो सकता है I
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🌹राम राम 🌹